Public Administration:- Development as a Discipline


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लोक प्रशासन एक क्रियाकलाप के साथ-साथ एक बौद्धिक विषय भी है। लोक प्रशासन का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना कि नगर- राज्यों का। जैसे-जैसे राज्य की प्रकृति और उसका कार्य क्षेत्र व दायित्व का विकास हुआ वैसे ही लोक प्रशासन का विकास हुआ।
वर्तमान में लोक प्रशासन का जो रूप हम देखते हैं वह विकासात्मक प्रक्रियाओं की उपज हैं। अतः हमें उन कारणों का विश्लेषण करना होगा जिनसे लोक प्रशासन एक अध्ययन विषय के रूप में उभरा।

लोक प्रशासन का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है :-
एक क्रिया के रूप में
एक अध्ययन विषय के रूप में
साइमन के अनुसार "जब दो व्यक्तियों ने संगठित होकर एक पत्थर को धकेलना शुरू किया तभी से प्रशासन की शुरुआत हुई।"

लोक प्रशासन एक क्रिया के रूप में:-

लोक प्रशासन एक क्रिया के रूप में तभी अस्तित्व में आ गया था जब से मानव ने संगठित होकर रहना शुरू कर दिया था। भारत में कौटिल्य की 'अर्थशास्त्र', अबुल फजल की 'आईन-ए-अकबरी' व पश्चिम में अरस्तु की 'पॉलिटिक्स', प्लेटो की 'रिपब्लिक', मेकियावेली की 'द प्रिंस' आदि पुस्तकें लोक प्रशासन को एक क्रिया के रूप में वर्णित करते हुए, लोक प्रशासन की सुविकसित व्यवस्था का चित्रण करती हैं।

लोक प्रशासन एक अध्ययन विषय के रूप में:-

लोक प्रशासन का नया रूप ज्यादा प्राचीन तो नहीं है लेकिन इसकी जड़ें हमें कहीं ना कहीं कौटिल्य के अर्थशास्त्र में देखने को मिलती हैं।
18वीं शताब्दी में लोक प्रशासन विषय का व्यापक तौर पर संकलन व अध्यापन का कार्य कैमरलवादियों (जर्मनी व ऑस्ट्रिया के प्रोफेसर का समूह) ने शुरू किया।
18 वीं सदी के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रथम वित्त मंत्री अलेक्जेंडर हैमिल्टन द्वारा प्रकाशित द फेडरलिस्ट पेपर्स (The Federalist Papers) के अंक 72 में लोक प्रशासन के अर्थ व उद्देश्यों को परिभाषित किया गया।
19वीं सदी के शुरू में ही फ्रांस ने लोक प्रशासन के महत्व को समझा व उसके विकास में अग्रणी भूमिका निभाई। वहां के चार्ल्स ज्यां बूनिन ने सन् 1812 में 'Principles of Public Administration' (Principel D'Adminstration Publique) नामक पुस्तक लिखी। फ्रांस में कई अन्य शोध ग्रंथ भी प्रकाशित हुए जिनमें 1859 में प्रकाशित विवेयन द्वारा लिखित 'Adminstrative Studies' नामक पुस्तक उल्लेखित हैं।
लोक प्रशासन को एक विषय के रूप में विकास के लिए ऊपर वर्णित सभी प्रयास अपना एक महत्व रखते हैं किंतु अध्ययन विषय के रूप में इसका विकास सर्वप्रथम संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रारंभ हुआ इसके बाद ही इसे एक संपूर्ण विषय का स्थान मिल सका।
19वीं सदी के अंत तक अमेरिकी सरकार व प्रशासन में जैक्सोनियम विचारधारा प्रचलित थी जिसके चलते अमेरिका के प्रशासन में लूट- प्रणाली व भ्रष्टाचार व्यापत रूप से मौजूद था इसी के प्रतिक्रियास्वरूप लोक प्रशासन में लोगों की रुचि बढ़ी। सन् 1887 में लोक प्रशासन का जन्म वूड्रो विल्सन के एक लेख 'द स्टडी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन' (The Study of Adminstration) से हुआ जो पॉलिटिकल साइंस क्वार्टरली में छपा था।

एक स्वतंत्र विषय के रूप में लोक प्रशासन का इतिहास लगभग 130-135 साल पुराना हैं, लेकिन राजनीतिक विज्ञान से पृथक हुए इस विषय में अनेक उतार-चढ़ाव आए। निकोलस हेनरी ने लोक प्रशासन के चरणों को पांच भागों में बांटा हैं।
1. राजनीति-प्रशासन द्विभाजन (1887-1926)
2. प्रशासनिक सिद्धांतो का निर्माण काल (1927-1937)
3. चुनौती का युग (1938-1947)
4. पहचान व संकट का काल (1948-1970)
5. नवीन लोक प्रशासन (1971-अब तक)


लोक प्रशासन के विकास के चरण:-

1. राजनीति-प्रशासन द्विभाजन (1887-1926)

लोक प्रशासन के इस चरण की दो प्रमुख विशेषताएं हैं:- एक तो लोक प्रशासन का जन्म और दूसरी प्रशासन व राजनीति का द्विभाजन
लोक प्रशासन का जन्म 1887 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। लोक प्रशासन को व्यवस्थित अध्ययन करने का श्रेय वूड्रो विल्सन को जाता हैं। इसलिए इन्हें लोक प्रशासन का जनक कहा जाता हैं। वूड्रो विल्सन, उसे समय प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में राजनीतिक अध्ययन के प्राध्यापक थे। सन् 1887 में राजनीति विज्ञान त्रैमासिक पत्रिका में उनका एक लेख 'द स्टडी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन' छपा। इस लेख ने ही लोक प्रशासन की एक पृथक, स्वतंत्र और व्यवस्थित अध्ययन की बुनियादी नींव रखी। विल्सन ने तर्क दिया कि राजनीति का सरोकार नीति निर्माण से है जबकि प्रशासन का सरोकार नीति क्रियान्वयन से हैं। 
वुड्रो विल्सन ने लोक प्रशासन का वर्णन व्यापार व विज्ञान के क्षेत्र में करते हुए लिखा कि प्रशासन का क्षेत्र व्यापार क्षेत्र है क्योंकि यह राजनीति की जल्दबाजी व संघर्षों से दूर रहता है। दूसरा विज्ञान के क्षेत्र में तर्क दिया कि लोक प्रशासन यह भी वर्णन करता हैं कि सरकार द्वारा बनाए गए संविधान को कैसे कम खर्चे में सही तरह के सफलतापूर्वक कैसे लागू किया जा सकता हैं।
विल्सन के लोक प्रशासन संबंधी विचारों को कोलंबिया विश्वविद्यालय की प्रशासनिक कानून के प्राध्यापक फ्रैंक जे. गुडनाऊ ने सन् 1900 में अपने पुस्तक 'पॉलिटिक्स एंड एडमिनिस्ट्रेशन' में बढ़ाया। उन्होंने तर्क दिया कि राजनीति राज्य की इच्छा को प्रतिपादित करती है जबकि प्रशासन का संबंध इसके क्रियान्वयन से है। राजनीति और प्रशासन के इसी द्विभाजन के चलते फ्रैंक जे. गुडनाऊ को 'अमेरिकी लोक प्रशासन का पिता' के रूप में जाना जाता हैं।
20वीं सदी के शुरुआत से ही अमेरिका में लोक सेवा आंदोलन चले जिसमें अमेरिकी विश्वविद्यालयों का अहम योगदान रहा। इन आंदोलन के फलस्वरूप ही पहली बार लोक प्रशासन पर विद्वानों का ध्यान गंभीरता से गया। सन् 1914 में अमेरिकी राजनीतिक विज्ञान संघ द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया कि लोक प्रशासन का सरोकार सरकारी पदों के लिए विशेषज्ञ को प्रशिक्षित करना है। इसका यह प्रभाव पड़ा की अमेरिका में लोक प्रशासन को राजनीति विज्ञान का महत्वपूर्ण अंग मानते हुए एक पृथक विषय के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
एल. डी. व्हाइट द्वारा सन् 1926 में "Introduction to the Study of  Public Administration" नामक पुस्तक लिखी गई जिसे लोक प्रशासन की पहली रचना माना गया जिसके द्वारा लोक प्रशासन को अकादमी विषय के रूप में वैधता प्राप्त हुई। व्हाइट ने इस पुस्तक में लोक प्रशासन के व्यवहारिक स्वरूप का वर्णन करते हुए प्रशासन व राजनीति के द्विभाजन में विश्वास प्रकट किया। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य है कार्य-कुशलता व मितव्ययता हैं।


2. प्रशासनिक सिद्धांतो का निर्माण काल (1927-1937)

यह काल लोक प्रशासन का स्वर्ण काल माना जाता है। इस काल के विद्वानों का विश्वास था कि लोक प्रशासन में बहुत से ऐसे सिद्धांत हैं, जिन्हें लोक प्रशासन को कुशल व समृद्ध बनाने के लिए खोजा व लागू किया जा सकता हैं।
इस काल में विद्वानों ने इसे एक विज्ञान की संज्ञा देते हुए तर्क दिया कि लोक प्रशासन के सिद्धांत सार्वभौमिक वैधता व प्रासंगिकता रखते हैं।
सन् 1927 ई. में डब्लू. एफ. विलोबी की 'Principles of Public Administration' नामक पुस्तक से ही इस चरण की शुरुआत मानी जाती हैं। इस पुस्तक में विलोबी ने तर्क दिया कि लोक प्रशासन में अनेक सिद्धांत होते हैं और इन सिद्धांतों को लागू कर लोक प्रशासन में सुधार संभव हैं।
विलोबी के बाद अनेक विद्वानों ने इस विषय से संबंधी अनेक पुस्तक लिखना शुरू कर दिया जिसमें  सन् 1924 में मेरी पार्कर फोलेट द्वारा लिखी गई पुस्तक 'Creative Experience' है जिसमें प्रशासन में मौजूद संघर्षों पर ध्यान केंद्रित किया गया हैं। हेनरी फेयोल द्वारा सन् 1916 में फ्रांसीसी भाषा में लिखी गई पुस्तक 'General and Industrial Administration' का सन् 1929 में 'General and Industrial Management' नाम से अंग्रेजी अनुवाद किया गया जो बाद में 1949 में प्रकाशित हुई।
सन् 1930 में मूने व रैले द्वारा रचित 'Onward Industry' जिसे सन् 1939 में 'Principle of Organization' के नाम से प्रकाशित किया गया।
सन् 1937 में लूथर गुलिक व उर्विक द्वारा लिखित एक शोधपत्र 'Papers on the Science of Administration' ने इस चरण को अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया। उन्होंने लिखा कि "इस शोध पत्र की सामान्य थीसिस यह है कि मानव संगठन के अध्ययन द्वारा ऐसे सिद्धांतों पर आगमनात्मक तरीके से पहुंचा जा सकता है, जो किसी भी प्रकार के मानव संबंधों की व्यवस्थाओं को नियमित कर सकते हैं।" इसी काल में लूथर गुलिक ने प्रशासन के कार्यों की व्याख्या "POSDCORB" नामक शब्द में संकलित की।
इस काल के लगभग सभी विचारक विचारकों का मानना था कि प्रशासन के सार्वभौमिक नियम व सिद्धांत ही इसे एक विज्ञान के रूप में स्थापित करते हैं। इस काल में लोक प्रशासन अपनी पराकाष्ठा के शीर्ष पर पहुंचा।

3. चुनौती का युग (1938-1947)

यह काल लोक प्रशासन के क्षेत्र में ध्वंसकारी रहा, क्योंकि इसी काल में लोक प्रशासन के सिद्धांतों को चुनौती मिली शुरू हो गई। इस काल का मुख्य विषय था लोक प्रशासन के संबंध में मानवीय संबंधों पर जोर देना। इस काल का प्रारंभ द्वितीय काल (1927-1937) में प्रतिपादित लोक प्रशासन एक विज्ञान दृष्टिकोण के विरुद्ध शुरू हुई प्रतिक्रिया से हुआ। प्रशासन के सिद्धांतों को चुनौती देते हुए, इन्हें कहावतों की संज्ञा दी गई। सिद्धांतों को चुनौती देने में "हाथोर्न प्रयोग" ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सन् 1938 में चेस्टर बर्नार्ड की पुस्तक का 'The Functions of Executive' में सबसे पहले प्रशासनिक सिद्धांतों की आलोचना की गई। इन्होंने संगठन को एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में देखते हुए प्रशासनिक प्रतिक्रियाओं पर मानवीय तत्वों के प्रभाव को विश्लेषित करने का प्रयास किया।
सन् 1946 में हर्बर्ट साइमन ने अपना एक लेख प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने प्रशासनिक सिद्धांतों को नकारते हुए उनका उपवास उड़ाया व सिद्धांतों को मात्र कहावतों की संज्ञा दी। साइमन ने अपने इस लेख में लिखा कि "यह सिद्धांत मनुष्य के रहने लायक मकान निर्मित करने की बजाय क्रम में लगी हुई छोटी-छोटी चीटियों की श्रेणी ही दिखाई देते हैं।" सन् 1947 में हर्बर्ट साइमन की प्रसिद्ध पुस्तक 'Administrative Behaviour : A Study of Decision Making in Administrative Organisation' प्रकाशित हुई। जिसमें उन्होनें भली-भांति सिद्ध किया कि प्रशासन में सिद्धांत नाम की कोई चीज नहीं होती।
सन् 1947 में ही रॉबर्ट डाहल ने अपने लेख  'The Science of Public Administration' में यह सिद्ध किया कि लोक प्रशासन विज्ञान नहीं है, उन्होंने बताया कि लोक प्रशासन को सिद्धांत निर्माण में तीन बाधाओं का सामना करना पड़ा हैं।
  1. विज्ञान मूल्य-शून्य होता है जबकि प्रशासन मूल्य बहुलता हैं।
  2. मनुष्य के व्यक्तित्व अलग-अलग होते हैं, जिससे उनके कार्यों में भिन्नता आती हैं।
  3. प्रशासन समाजिक ढांचों में कार्य करता है जो सभी जगह एक समान नहीं होते हैं।
रॉबर्ट डाहल के अनुसार, "जब तक लोक प्रशासन का अध्ययन तुलनात्मक नहीं है तब तक लोक प्रशासन शासन एक विज्ञान के दावे खोखले प्रतीत होते हैं।" 


4. पहचान व संकट का काल (1948-1970)

यह काल लोक प्रशासन के इतिहास में संकट काल रहा। लोक प्रशासन जो अब तक राजनीति-प्रशासन द्विभाजन की बात कर रहा था, वो सभी बातें नाकाम सिद्ध हो रही थी। साइमन द्वारा की गई आलोचनाओं से सिद्धांतवादी विचारधारा धराशायी हो गई थी। यहां तक की विषय के अस्तित्व को ही खतरा हो गया था। जिसके चलते लोक प्रशासन कोई एक स्वतंत्र विषय है या नहीं इसी बात पर चर्चा होने लगी थी। इसी को "स्वरुप की संकटावस्था" कहा गया।
चौथे चरण में लोक प्रशासन ने दो रास्ते अपनाएं। एक वो जिसमें विद्वान वापस राजनीतिक शास्त्र की तरफ लौट गए। दूसरा जिसमें कुछ विद्वान प्रशासन विज्ञान की ओर चल दिए। प्रशासनिक विज्ञान के मार्ग पर चलते हुए लोक प्रशासन जहां एक और अपनी पृथक पहचान हो रहा था, लोक प्रशासन के क्षेत्र में तुलनात्मक लोक प्रशासन व विकास प्रशासन का उद्भव हुआ। तुलनात्मक शासन के विकास में एफ. डब्लू. रिग्स, रिचर्ड गेबल, डगलस मार्क ग्रेगर, शेरवुड, फैरल हैडी, अल्फ्रेड डायमेट, फ्रेडरिक क्लीवलैंड आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
सर्वप्रथम 1948 में तुलनात्मक लोक शासन को एक स्वतंत्र विषय के रूप में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में शुरू किया गया। Comparative Administrative Group की स्थापना 1963 में 'American society for Public Administration' द्वारा की गई।
20वीं सदीं के पांचवें व छ्ठे दशक में लोक प्रशासन में विकास प्रशासन की अवधारणा विकसित हुई। जिसके प्रतिपादक एडवर्ड डब्लू वाईडनर हैं, इन्होंने विकास प्रशासन को कार्योंमुख व लक्ष्योंमुख  प्रणाली के रूप में वर्णित किया। किंतु लोक प्रशासन के क्षेत्र में विकास प्रशासन शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग यू एल गोस्वामी द्वारा अपने लेख 'The Structure of Public Administration in India' (1955) में किया गया विकास प्रशासन के विश्वविख्यात प्रतिपादक जॉर्ज ग्रांट है, जिनकी पुस्तक विकास 'प्रशासन अवधारणा लक्ष्य और पद्धति' है जो सन् 1979 में प्रकाशित हुई।
एशिया अफ्रीका के नवोदित राज्य जो औपनिवेशिक सत्ता से मुक्त हुए थे, उनकी विकास नीतियों व कार्यक्रमों की दिशा में औद्योगिकरण और आधुनिकीकरण के द्वारा लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए कार्य कर रहे प्रशासनिक तंत्र को ही विकास प्रशासन की संज्ञा दी गई। विकास प्रशासन में लगे सभी विद्वानों ने एकमत से इसकी एक ही परिभाषा को स्वीकार किया है,  "सामाजिक अर्थतंत्र का योजनाबद्ध परिवर्तन ही विकास प्रशासन हैं।" विकाश प्रशासन में एफ. डब्लू. रिग्स, फैरल हैडी, लुइस पाईं, वॉटरसन, फेनसोड, इर्विग आदि विद्वानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

5. नवीन लोक प्रशासन (1971-अब तक)

अक्सर हम एक कहावत सुनते हैं:- "चुनौतियों से मनुष्य महान होता है।" यही लोक प्रशासन के साथ हुआ लोक प्रशासन के लिए इसका संकट का काल ही इसके लिए वरदान सिद्ध हुआ। समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र व मनोविज्ञान के विद्वानों ने इस विषय में रुचि लेते हुए इसकी सेवा में लग गए। जिसके चलते इस काल में लोक प्रशासन का सर्वांगीण विकास हुआ व लोक प्रशासन के अध्ययन में अंतर्विषयी सहयोग व अध्ययन पर जोर दिया जाने लगा।
इस काल का मुख्य सरोकार लोक नीति विश्लेषण का सरोकार था। जिसके चलते लोक प्रशासन के समाजिक अध्ययन के कई विषयों के साथ संबंध स्थापित हो गए। विश्व में प्रशासन के व्यावहारिक अनुभवों से राजनीति-प्रशासन द्विभाजन को समाप्त करते हुए, दोनों के निकट संबंध स्थापित किए गए ताकि नीतियों के विश्लेषण की प्रवृत्ति आसान हो सके।
डवाइट वाल्डो ने कहा कि "राजनीति और प्रशासन के बीच पृथक्करण एक घिसा पिटा मंच बन चुका हैं।"
सन् 1968 के बाद लोक प्रशासन के क्षेत्र में नवीन विचारों का विकास हुआ। इनमें नैतिकता, उपयोगिता, प्रतिबद्धता, विकेंद्रीकरण, मूल्य आधारित प्रतिनिधित्व, परिवर्तन, सामाजिक समता , ग्राहकोंन्मुख एवं प्रासंगिकता को शामिल किया गया। इन्हीं विचारों को नवीन लोक प्रश्न की संज्ञा दी गई।
नवीन लोक शासन के विकास में निम्नलिखित रिपोर्ट/पुस्तकें उत्तरदायी हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में सार्वजनिक सेवाओं संबंधी उच्च शिक्षा पर हनी प्रतिवेदन 1967
  • अमेरिका में आयोजित लोक प्रशासन के सिद्धांत और व्यवहार पर फिलाडेल्फिया सम्मेलन (1967)
  • प्रथम मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (1968)
  • फ्रैंक मैरिनी द्वारा लिखित पुस्तक "Towards New Public Administration MinnowBrook Prospective" (1971)
  • डवाइट वाल्डो द्वारा संपादित पुस्तक "Public Administration in the time of Turbulence" (1971)

भारत में लोक प्रशासन का अध्ययन:-

  • सन् 1930 में लोक प्रशासन एक अनिवार्य विषय के रूप में लखनऊ विश्वविद्यालय में शुरू हुआ जिसे M.A.  राजनीति विज्ञान के विषयों में शामिल किया गया।
  • सन् 1937 में लोक प्रशासन पर डिप्लोमा पाठ्यक्रम मद्रास विश्वविद्यालय में शुरू किया गया।
  • सन् 1949 में नागपुर विश्वविद्यालय ने लोक प्रशासन के लिए एक पृथक विभाग की स्थापना की।
  • सन् 1954 में पहली बार भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की स्थापना दिल्ली में की गई।
  • सन् 1987 में संघ लोक सेवा आयोग द्वारा पहली बार लोक प्रशासन को एक पृथक विषय मानते हुए वैकल्पिक विषय के रूप में शुरू किया गया। 

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